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नई ज़मीन नया फ़लसफ़ा / ज्ञानेन्द्र पाठक
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नई ज़मीन नया फ़लसफ़ा तलाश करो
नई ग़ज़ल के लिए कुछ नया तलाश करो
मेरा ज़मीर जो रस्ता मुझे दिखाता था
वो मुझको छोड़ कहाँ गुम हुआ तलाश करो
वो एक शख़्स जो मुझको बहुत ही प्यारा था
किसी ने छीन लिया तुम ज़रा तलाश करो
क़दम क़दम पे मिलेंगे बहुत से चौराहे
इन्हीं में सोच समझ रास्ता तलाश करो
वो जिसका काम ही फूलों को हार करना था
वो आदमी था मियाँ काम का तलाश करो