छोटे शहर में प्यार / शिरोमणि महतो
छोटे शहर में प्यार
पनपता है धीरे-धीरे
पलता है लुक-छुपकर
आँखों की ओट में
ह्रदय के तल में
छोटे शहर में
फैल जाती है प्यार की गन्ध
इस छोर से उस छोर तक
धमधमा उठता है —
पूरा का पूर — छोटा शहर
छोटे शहर का आकाश
बहुत नीचा होता है
और धरती बहुत छोटी
जहाँ परिन्दे पंख फैलाकर
उड़ भी नहीं सकते
छोटे शहर में
प्रेमियों के मिलने के लिए
कोई गुप्त सुरक्षित जगह नहीं होती
न कोई सिनेमाघर होता
न बाग़-बगीचे
और न ही किसी किले का कोई खण्डहर
जहाँ दो-चार पल
जिया जा सके एक साथ
और सांसो की आँच से
सेंका जा सके प्यार को !
छोटे शहर में
प्रेमियों का मिलना कठिन होता है
वहाँ हर घर के कबूतर
हरेक घर की मुर्गियों को पहचानते हैं
दो प्रेमियों को मिलते देखकर
कोई मुर्गा भी शोर मचा सकता है !
छोटे शहर में दो प्रेमी
एक-दूसरे को देखकर
मुस्कुरा भी नहीं सकते
आँखों की मुस्कुराहट से
करना होता है — सम्वाद
और सम्वेदना का आदान-प्रदान !
छोटे शहर में प्यार
बहुत मुश्किल से पलता है
पूरा का पूरा छोटा शहर
बिंधा होता है —
घरेलू रिश्तों की डोर से
जिसमें प्रेम के मनके गूँथे नहीं जाते !
छोटे शहर में
चोरी-छिन्नतई जायज है
गुण्डई-लंगटई जायज है
यहाँ तक कि मौज मस्ती के लिए
अवैध सम्बन्ध भी जायज है
किन्तु, प्यार करना पाप होता है
एक जघन्य अपराध होता है
प्रेम करने वालों को चरित्रहीन समझा जाता है
छोटे शहर में प्यार को
हवा में सूखना पड़ता है
धूप में जलना पड़ता है
आग निगलना पड़ता है
और खौलते हुए तेल में उबलना पड़ता है
इसके बावजूद साबुत बचे तो
लाँघनी पड़ती है —
और कई अलँघ्य दीवारें !
वैसे तो
छोटे शहर में
प्रेम से ज़्यादा
पेट के सवाल लटके हुए होते
हवा में काँटों की तरह
जो आत्मा को कोंचते रहते हैं
और कई-कई बार
प्रेम-भ्रूणावस्था में ही नष्ट हो जाता है !
छोटे शहर में प्यार
अक्सर अपने पड़ाव तक
नहीं पहुँच पाता है
उसे झेलना पड़ता है —
विरह
या फिर — निर्वासन !