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तहरीर में पिता / महेश कुमार केशरी

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ये कैसे लोग हैं ...?
जो एक दूधमुँही नवजात
बच्ची के मौत को नाटक
कह रहें हैं...

वो, तहरीर में ये लिखने
को कह रहे हैं कि
मौत की तफसील
बयानी क्या थी...?

पिता, तहरीर में क्या
लिखतें...?
अपनी अबोध बच्ची
की, किलकारियों
की आवाजें...
 
या... नवजात बच्ची...
ने जब पहली बार...
अपने पिता को देखा
होगा मुस्कुराकर...

या, जन्म के बाद
जब, अस्पताल से
बेटी को लाकर
उन्होंने बहुत संभालकर
रखा होगा... पालने... में...

और झूलाते... हुए...
पालना... उन्होंने बुन रखा
होगा... उस नवजात को
लेकर कोई... सपना...

वो तहरीर में उन खिलौनों
के बाबत क्या लिखते...?
जिसे उन्होंने... बड़े ही
शौक से खरीदकर लाया था...

वो तहरीर में क्या लिखतें.?
कि जब, उस नवजात ने
दम तोड़ दिया था
बावजूद इसके वह
अपनी नवजात बेटी में भरते
रहे थें, साँसें!

मैं, सोचकर भी काँप जाता हूँ
कि कैसे, अपने को भ्रम में
रखकर एक बाप लगातार
मुँह से भरता रहा होगा
अपनी बेटी में साँसें!

किसी नवजात बेटी का मरना
अगर नाटक है...
तो, फिर, आखिर एक बाप
अपनी तहरीर में बेटी की मौत
के बाद क्या लिखता?