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क्लियोपाट्रा ... / अलेक्सान्दर ब्लोक / वरयाम सिंह

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पहला नहीं, दूसरा नहीं, ये तीसरा वर्ष है
खुली है नुमाइश मोम की मूर्त्तियों की ।
थोड़ा भी धीरज नहीं पियक्कड़ों की भीड़ में
तुरन्त चाहते हैं सभी देखना
महारानी को, प्रतीक्षारत लेटी हैं जो ताबूत में ।

वह लेटी है काँच के ताबूत में
न जीवित, न मृत ।
एक-दूसरे के कान में बिना रुके
कहे जा रहे हैं लज्जाजनक शब्द उसके विषय में।

वह सुस्ता रही है टाँगें पसारे —
भूल जाना चाहती है, सो जाना चाहती है सदा के लिए ...
एक साँप आहिस्ता से बिना धीरज खोए
डंक मार रहा है मोम के उसके वक्ष पर ।

मैं स्वयं निर्ल्लज विक्रय की वस्तु
आँखों पर जिसकी उभर आए हैं नीले छल्ले
आया हूँ उसकी विख्यात मुख-मुद्रा देखने
अंकित है जो मोम पर, प्रदर्शन के लिए ...

हर कोई ध्यान से परख रहा है तुम्हें
यदि ख़ाली न होता तुम्हारा यह ताबूत
मुझे बार-बार सुनने को मिलती
सड़े हुए होठों की घमण्डी आहें :

"सुनो, फूलों की बारिश करो मुझपर,
कभी सदियों पहले
मैं महारानी थी मिस्र की
अब मैं मोम हूँ, सड़ान्ध और राख हूँ ।"

"महारानी, तुमने मुझे बन्दी बनाया था !
मैं मात्र दास था मिस्र में,
लेकिन अब मेरे भाग्य में लिखा है
होना कवि और सम्राट एक साथ !

दिखाई नहीं दे रहा क्या तुम्हें ताबूत में से
कि रोम की तरह रूस भी डूबा है तुम्हारे नशे में ?
कि मैं और सीजर — दोनों
बराबर नहीं रहेंगे क्या सदियों तक क़िस्मत के सामने ?"

मैं चुप हूँ, देख रहा हूँ, उसे कुछ सुनाई नहीं देता !
लेकिन उसकी छाती में हरकत होती है ज़रा सी
पारदर्शी काँच के भीतर सांस लेती है वह
सुनाई पड़ते हैं मुझे उसके शान्त शब्द :

"तब मैं डराती-धमकाती थी
और आज भी आग कम नहीं है मुझमें,
आज पियक्कड़ कवि की आँखों में आंसू हैं
और अट्टाहस है पियक्कड़ वेश्या की आँखों में । "

16 दिसम्बर 1907

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह
 —
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
           Александр Блок
               Клеопатра

Открыт паноптикум печальный
Один, другой и третий год.
Толпою пьяной и нахальной
Спешим... В гробу царица ждёт.

Она лежит в гробу стеклянном,
И не мертва и не жива,
А люди щепчут неустанно
О ней бесстыдные слова.

Она раскинулась лениво -
Навек забыть, навек уснуть...
Змея легко, неторопливо
Ей жалит восковую грудь...

Я сам, позорный и продажный,
С кругами синими у глаз,
Пришёл взглянуть на профиль важный,
На воск, открытый напоказ...

Тебя рассматривает каждый,
Но, если б гроб твой не был пуст,
Я услыхал бы не однажды
Надменный вздох истлевших уст:

"Кадите мне. Цветы рассыпте.
Я в незапамятных веках
Была царицею в Египте.
Теперь - я воск. Я тлен. Я прах".

"Царица! Я пленён тобою!
Я был в Египте лишь рабом,
А ныне суждено судьбою
Мне быть поэтом и царём!

Ты видишь ли теперь из гроба,
Что Русь, как Рим, пьяна тобой?
Что я и Цезарь - будем оба
В веках равны перед судьбой?"

Замолк. Смотрю. Она не слышит.
Но грудь колышется едва
И за прозрачной тканью дышит...
И слышу тихие слова:

"Тогда я исторгала грозы,
Теперь исторгну жгучей всех
У пьяного поэта - слёзы,
У пьяной проститутки - смех".

16 декабря 1907