कृष्ण विवर / गीता शर्मा बित्थारिया
जब छलती हैं उम्मीदें
जब टूटते हैं सपने
जब ठगते हैं अपने
जब बिखरता है विश्वास
तब कोई नहीं होता है
आस पास
सिवाय दर्दनाक अवसाद के
जब छा जाता हैं निराशा का कोहरा
दमधोंटू उदासीनता
और मृत्युतुल्य सन्नाटा
जब कोई अपना नहीं होता है
आसपास
सिवाय डरावने ऐकान्त के
जब झूठ चिल्लाता है
सत्य साध लेता है मौन
जब पूरे जोर से चलती हैं आंधियां
बुझाने का एक दीप का प्रकाश
तब कुछ नहीं होता है
आस पास
सिवाय स्याह अंधकार के
तब अनायास
लील जाने को सारा अस्तित्त्व
गुरुत्व ताकत से
अपने अन्दर
खींच लेता है
कोई कृष्ण विवर
पर !!!!
प्रेम का गुरुत्वाकर्षण
इन सबसे अधिक होता है
जिसमें समा जाते हैं
ना जाने ऐसे कितने विवर
सुनो!!!
हृदय से बड़ा कोई
कृष्ण विवर नही है
पूरे ब्रम्हाण्ड मे
जिसमें समाए होते हैं
कई दर्द अवसाद
सूना ऐकान्त अंधकार
और रहता है प्रेम
जो तम्हें निगलता नहीं
मुक्ति देता है