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मौन का अनुवाद / गीता शर्मा बित्थारिया

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हर स्त्री की
कहानी होती है
सबसे अलग
पर कथानक

कमोवेश मिलता झुलता
अपने संघर्षों की गाथा
जिसे वो लिखती नहीं
जीती है हर दिन

हर स्त्री की
कविताएं भी होती हैं
प्रेम की बसन्त की
विचरती है उनमें
जिसे वो कहती नहीं है
कविताएं घुट रही होती हैं
उसके सपनों के साथ साथ

स्त्री का जीवन में
होती हैं पटकथाएं भी
नाम अलग अलग हो सकते हैं
पर पात्र लगभग एक समान
जिसमें उसे निभाना है
पहले से निर्धारित
कटपुतली का पात्र
अपने निर्देशक के साथ

कितना विचित्र है
स्त्री के नख शिख़ के
सौंदर्य पर लिखे गए हैं
ना जाने कितने
काव्य शास्त्र
रचे गए
अभिसारिका नायिका के
श्रृंगार रस में डूबे पात्र
सदियों से चली आ रही
साहित्य सृजन की परम्परा में
चिर परिचित
पूर्व स्थापित
गुणोधर्म
से लिखे गए उनके पात्र

क्या कभी किसी ने
जाना सीखा वो
ककहरा
जिसमें स्त्रियां
सुना रही होती हैं
अपनी निजी
कहानी या कविता
जो कर सके
उनके मन में गहरे दबे पड़े
अनकहे भाव
उनके सदियों से साधे
मौन का अनुवाद