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संदली मन वाली लड़की / गीता शर्मा बित्थारिया

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मन से हंसती थी
मन से रोती थी
बहुत याद आती है
कत्तई आंखों वाली
वो संदली मन वाली लड़की
मिलने को
तरसती हैं बाहें
टकटकी बांधे
तकती आँखें
जाने कहां गुम हुई वो
गलत पते की चिठ्ठी सी
वो कत्तई आंखों वाली
संदली मन वाली लड़की

पहाड़ी नदी सी चंचल
जो बात वे बात
हंसती थी तो
हंसती चली जाती
कोई बोल दे
बस कुछ ऊंचा नीचा
रोती थी तो
फिर झरने सी बहती आँखें
बहती चली जाती

रंग भाते थे उसे
तो रंग लिए थे
पंख उसने अपने
तितली सी
उड़ती फिरती
इधर उधर बिखराती
अपनी मस्ती के रंग
जब भी मिले उसे
उड़ने को पंख
धरा गगन सब
रंगती चली जाती

अल्हड़पन क्या छूटा
रहती है अब
भयाक्रांत सी
हर आहट पर
डरने लगा हो जैसे
व्याघ्र से
उसका मासूम
मृग छौने सा मन

बादलों को देख
नाच उठती थी
मोरनी सी
क्या फिसला
लड़कपन एक बार
उसकी नर्म हथेलियों से
टूटे पंखों की चिड़िया सी
बस फड़फड़ाती रही
हर बार

नभ छूने की
चाह में
फैला ली थी
बाहें उसने
टकराकर
राह के पर्वत से
अकेली बदली सी
बरसी तो फिर
बरसती ही रही
अकारण आजीवन

चुना था अपने लिए
एक नया विहान
बदलता रहा परिवेश
इधर से उधर
बिछड़ कर अपनी
शाख से
गीली लकड़ी सी
धुंआ धुंआ हो
सुलगी तो
सुलगती ही रही

उसे तो पता था कि
गोल है दुनिया
दूर तलक
दिखाई नहीं देती
कोई सीमा
फिर किसने खींची
उसकी लक्ष्मण रेखा
रेखा के आर पार भी
जब देखे आक्रांता
वो सहमी तो
बस सहमी सी रही हर बार

आंखों की नीली झील में
झिलमिलाती
प्रिय की छवि
जैसे झील में
झांकता है चाँद
पर पलकें मूंद
मन के गहरे समंदर में
सीपी में मोती सा
अपना प्रेम
छिपाती रही
अधूरा प्रेम जीती रही
सप्रयास हर बार

सपनों के राजकुमार
को पाने
देख डाले ना जाने
कितने सपने
सच्चाई ने सपनों को
झुठलाया तो
दर्पण में दरार सा
टूटा उसका मन तो
तड़फती ही रही हर बार

चिर याचित प्रेमी में भी
पुरुष ही पाया सदा उसने
ठगी जाती रही
अपनी ही चाहतों में
जीवन के
पतझड़ में
कैसे सहे वो
इतना शुष्क सा मौसम
चिनार की पत्ती सी
झड़ी तो फिर
झड़ती रही जीवन पर्यन्त

समय के पड़ाव
आते रहे
जाते रहे
दबे पांव
पीछे से आकर
ढकते रहे
उसकी आंखों को
अपनी हथेलियों से
वो अपनी आंखों का
जादुई सा कत्तई रंग
भूली तो फिर
भुलाती रही हर बार

अलभोर
सूर्य को अर्घ्य देकर
पूजती है तुलसी का विरवा
मांगती है मन्नत
परिवार की
उपासती हर किसी का
सुख और लंबी उम्र
वो यूं ही जन्मी
और यूं ही जीती रही
अयाचित सा जीवन
 
औरों की खुशी में
ढूंढ़ती अपनी खोई हंसी
कितनी बदल गई
गुम हुई वो लड़की
अक्सर मिल जाया करती है
यादों के गलियारे में
थोड़ी थोड़ी सी
हर लड़की में
रहती है जो
वो कत्तई आंखों वाली
संदली मन वाली लड़की