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पहले भी आया था बसन्त / गीता शर्मा बित्थारिया

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पहले भी आया था बसन्त
जब राम ने निहारा था सीता को
प्रथम बार
मिथिला के उपवन में
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
अशोक वाटिका के फूलों में
जब मिले थे दोनों के विरही नयन

पहले भी आया था बसन्त
अपने सौंदर्य का सतीत्व साधे
रमी थी अपने कुटी में हर्षित अहिल्या
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
जब जड़ हो चुकी शापित शिला में
स्पर्श से हुआ आत्म चेतना का स्पन्दन

पहले भी आया था बसन्त
जब कृष्ण मिले थे राधा से
वृंदावन की कुंज गलियों में
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
जब कृष्ण की मुरली बजाने लगी थी
मीरा के गीतों में राधा की प्रेमधुन

पहले भी आया था बसन्त
जब द्रोपदी ने स्वम वरा था अर्जुन को
अपना जीवन साथी
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
जब राजवधू की अक्षुण्य अस्मिता के लिए
केशव ने बढ़ाया था सम्मान चीर

पहले भी आया था बसन्त
जब यशोदा से मिले थे सिद्धार्थ
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
जब भिक्षा पात्र लिऐ
यशोदा के द्वार आए थे
महाबोधि सत्व बन कर सिद्धार्थ

पहले भी आया था बसन्त
जब आम्रपाली के प्रेम में
बंधे थे राजवंश
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
जब नगर वधू के घर पहुंचे थे
अतिथि बन कर तथागत

पहले भी आया था बसन्त
जब दुष्यंत ने देखा था शकुन्तला को
कण्व ऋषि आश्रम में मृग छोने के साथ
पतझड़ के बाद
फिर लौटा था बसन्त
जब दुष्यंत ने
प्रणय पार्थी होकर किया था
शकुन्तला का सत्कार

पीड़ा का ताला देख
लौट गया बेरंग
मेरे द्वारे भी आया था बसन्त
मैं पतझड़ अनुरागी
करती रही बसन्त आगमन की
अंतहीन प्रतीक्षा
जानती हूं
अमलतास के पुष्पगुच्छ सा
प्रेम ही
लौटाएगा मेरे जीवन का बीता बसन्त