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संवादों की शून्यता / गीता शर्मा बित्थारिया

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पीपी
विषाद अवसाद
का तिमिर नीड़
निर्दय निर्जन
निशांत निस्पृह
अवरुद्ध अश्रु
अन्तिम विकल्प
मौन में कोलाहल
भर देती है
संवादों की शून्यता

धुंध में लिपटी
सर्द रात सी वेदना
उस पार बची जो
किंचित संभावना
संदेहों के गहरे घेरे
कितना अगम्य
कितना नीरव
कर देती है
संवादों की शून्यता

पीड़ा से संवाद
आंखों के रतजगे
संवेदनाओं का ह्रास
सन्नाटों सा सूनापन
संबंधों में दूरी
कितनी ठिठुरन
भर देती है
संवादों की शून्यता

शून्यता से निर्मित
ये निर्वात अकेलापन
धुंध में लिपटी
सर्द रात सी वेदना
उस पार बची जो
किंचित संभावना
कितना अगम्य
कितना नीरव
कर देती है
संवादों की शून्यता

शून्यता से
निर्मित नितान्त निर्वात
अनचाहा अकेलापन
वेदना के अंधे कुंए में
लौट कर आती अनसुनी पुकार
कोई हो जो पढ़ सके इस मौन को
तोड़ कर भ्रम अहम के
एक अजनबी सी तलाश है
जो भर सके इस शून्य