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चाहता है कि जाँ निसार करे / राजेन्द्र तिवारी

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चाहता है कि जाँ निसार करे
दिल मगर किस पे ऐतबार करे

प्यार सब बेशुमार करते हैं
कोई अपना हमें शुमार करे

है तरक़्क़ी की दौड़ में दुनिया
कैसे ठहरे किसी को प्यार करे

आओ गूगल पे चैट करते हैं
कौन चिट्ठी का इन्तज़ार करे

थरथराती है प्यास होठों पर
कोई लफ़्ज़ों को आबशार करे

उसकी तस्वीर बन तो सकती है
शक्ल ख़ुश्बू जो अख़्तियार करे

एक ही नाव पर सवारी हो
शायरी या कि कारोबार करे