भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छन्द / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 6 अक्टूबर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1-रोला

औरों पर बोझ बन, जग में जीते नहीं हैं।
सुख का भी अकेले, रस वे पीते नहीं हैं॥
समर्पित तन-मन से, परहित में वे हर समय।
उनके ही त्याग से, यह जग रहता है अभय ।।

2-कुण्डलिया

नेता अपने देश के , करते बहुत कमाल ।
देश-प्रेम की आड़ में, खूब उड़ाते माल ।
खूब उड़ाते माल, ढोंग सेवा का करते।
पद मिल गया कोई,पेट अपनों का भरते।
झूठे वादे करे, धोखा सभी को देता
अवसरवादी धूर्त्त, भ्रष्ट , कलियुग का नेता।
-0-(13-1-1981)