गुरू-शिष्य सम्वाद / शंख घोष / शेष अमित
दो व्यक्ति बातचीत करते हुए चल रहे हैं
दूसरा व्यक्ति —
और जो बातें करना चाहते हैं ज़्यादा,
जो किसी भी प्रसंग पर बोलना चाहते हैं,
उन्हें क्या दण्डित करूँ जीवन-भर ?
किसी भी बहाने ?
पहला व्यक्ति —
कभी नहीं । नहीं, कभी नहीं ।
बल्कि, उन्हें मीठे बोल से, प्यार से अपने पास खींचो ।
बून्द बनाकर रख दो अपने उपहारों के भार से ।
आत्म-विस्मृत
शब्दों के विकल्प मिलेंगे उन्हें ।
अगर वे कुछ कहना भी चाहें तो कहेंगे मन-ही मन ।
दूसरा व्यक्ति —
और जो स्पष्ट विरोधी हैं ?
पहला व्यक्ति —
विरोधी ?
विरोधी भला कैसे रहेंगे,
तुम्हारे स्वच्छ राज में ?
तुम्हारे समृद्ध राज-पाट में ?
दूसरा व्यक्ति —
समृद्ध ?
पहला व्यक्ति —
यह नहीं ?
हे वत्स ! याद रखो —
समृद्धि जगी रहती है शब्दों के देश में,
भारी आभूषणों में ।
और कुछ नहीं ।
गणित कहानी है मात्र ।
संख्या तत्व से झरती है रेत ।
इसलिए,
तुम जो चाहते हो सुनना,
अमात्य तुम्हें वही सुनायेंगे ।
जो उस पर करते हैं शक़,
उनपर रखते हुए नज़र,
नज़रों से ओझल बनाए रखो !
इसलिये दिखता हुआ कोई रूप
कोई शब्द-अलंकार भी
तुम्हारे राज न्यायधर्म को न कर दे क्षीण ।
कभी दिखती हुई और कभी छुपी हुई नज़र
इस से अधिक नहीं
कोई पूज्य इतिहास ।
दूसरा व्यक्ति —
तब प्रजातन्त्र ?
पहला व्यक्ति —
पुत्प्ररोदयादयःजातंत्र ? प्रजातंत्र है तंत्र केवल,प्रजा सिर्फ शोभा
जीवन दे सकती है,तुम्हारी ही कोई प्रभा |
2 | -तब भी देखता हूँ अपने ही वर्ग के लोगों को बेपरवाह-
1 | - यह सब तो घर की बातें हैं |
याद रखना स्मृति रही है सदा दुर्बल,कौन खोजता है साथ किसी पहचान में !
सब जीते हैं वर्तमान के साथ |
दूर से ही करते हैं भीड़ से प्यार | जो हैं एकाकी,उनसे नहीं है डर कोई |
उसके बाद आते एक-एक को कर दो भीतर-भीतर ही अकेला
फिर ग़ौर से देखो कितने सिर हैं किनके कँधों पर
परस्पर मरता हुआ हर एक-वह हो जाये अकेला तुम्हारे ही दोनों हाथों में बँधे धागों से झूलते
आदमी जैसा ही दिखता-
आत्मगत सुख और अनजाने आतंक से मान लेंगे सभी-कोई भी अन्याय-
( बातचीत करते हुये चल रहे हैं दोनों,दोनों की उँगली बंदूक के घोड़े पर है )
मूल बांगला से अनुवाद : शेष अमित