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विरह / आदम ज़गायेवस्की

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मैं लगभग ईर्ष्‍या के साथ पढ़ता हूँ अपने समकालीनों की कविताएँ :
तलाक़, अलगाव, तकलीफ़देह जुदाइयाँ;
व्यथा, नई शुरुआतें, छोटी-मोटी मृत्यु भी;
चिट्ठियाँ जो पढ़ी गईं और फिर जला दी गईं, जलना, पढ़ना, आग, संस्‍कृति,
क्रोध और निराशाएँ — कविता के पुंसत्व के लिए बेहद ज़रूरी माल;
निर्मम फ़ैसले, क़द्दावर सदाचारियों के ठहाकों की नक़ल उड़ाते
और अन्त में सब कुछ को समा लेने वाली चिरस्थायी आत्म की विजय ।

और हमारे लिए ? कोई मर्सिया नहीं, हमारे विरह पर कोई छन्द नहीं,
हमारे बीच कविता का कोई पर्दा नहीं
सटीक उपमाएँ भी हमें एक-दूसरे से अलग नहीं कर पातीं
नींद ही है वह एकमात्र जुदाई जिससे हम बच नहीं पाते
नींद की गहरी गुफ़ा, जिसमें हम अलग-अलग उतरते हैं
— और मैं पूरी तरह ध्यान रखता हूँ इस बात का कि
जो हाथ मैंने पकड़ रखा है उस समय
वह पूरी तरह सपनों से बना होता है ।


अँग्रेज़ी से अनुवाद : गीत चतुर्वेदी