अधेड़ कार्मेन / वोल्फ़ वोन्द्राचेक / उज्ज्वल भट्टाचार्य
कार्मेन की उम्र होने लगी थी,
वह शांत थी, ख़ूबसूरत, और कहीं ज़्यादा लाचार.
मर्दों को देखकर उसे जानलेवा दर्द होने लगता था –
और उसे यह बेवकूफ़ी से भरा खयाल ही नहीं आता था
कि सुखी हुआ जाय.
उसे नफ़रत ही अब प्यारी थी
और लगातार नये-नये रिश्ते
ऐसे मर्दों के साथ, जिन्हें आराम की तरह औरतों की चाह थी
और जो ख़ून रिसते घावों को रिसने देते थे.
ईमानदारी से वह दुखी हो जाती थी.
वह हमेशा किसी दूसरे को चाहती थी.
हमेशा उसी को, जिसे वह छोड़कर आती थी.
बेतकल्लुफ़ वह इस हालत से निपटती थी.
दो मर्द कुछ ज़्यादा हो जाते थे.
एक कभी काफ़ी नहीं होता था.
अगर कोई उसे चूमता था,
उसे उस दूसरे की चाह होती थी,
जिसकी उसे कमी महसूस होती थी.
वह हमेशा से ऐसी थी.
वैसा ही रहेगा, जैसा था.
जब दूसरों को चैन की ज़रूरत होती है,
वह खतरे मोल लेती थी.
फ़ैसला न ले पाते हुए वह मतवाली थी
और उसके हर प्रेमी को मशक्कत करनी पड़ती थी
और वह बढ़ती मस्ती में तड़पता था,
क्योंकि जो कुछ भी वह बंदा दे पाता था,
उसके लिये कभी काफ़ी नहीं होता था.
वह करती भी क्या?
क्या यह सिर्फ़ एक मज़ाक सा नहीं था?
जो कभी प्यार और हवस का ऊंचा पहाड़ था
अब सिर्फ़ मामुली सा टीला था, कुछ भी ऊंचा नहीं,
मशीन में घिसता बालू – एक कमज़ोर नौटंकी सा.
एक पुराना किस्सा. खोया हुआ हिस्सा.
और कौन किसके साथ सोया, इस क़ातिलाने सवाल का
आराम से हल निकलने लगता था.
दरवाज़े तेज़ी से खुलते बंद होते थे.
कपड़ों की अलमारियों में प्रेमियों का आना-जाना जारी रहता था.
सबकुछ एक त्रिभुज में घूमता रहता था.
लेकिन ओह, पर्दा कहीं गिर न जाय.
फिर यह दुनिया नीचे धंस जाएगी
दो टुकड़ों में बंटकर.
मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य