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आँधियों में दिया जलाना है / ओंकार सिंह विवेक

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आँधियों में दिया जलाना है,
हौसला अपना आज़माना है।
 
बात किससे करें उसूलों की,
जोड़ और तोड़ का ज़माना है।
 
ये जो पसरा हुआ है सन्नाटा,
कोई तूफ़ां ज़रूर आना है।
 
झूठ कब पायदार है इतना,
दो क़दम चलके गिर ही जाना है।
 
ज़िंदगी दायमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत को भी आना है।
 
इस क़दर बेहिसों की दुनिया में,
हाल दिल का किसे सुनाना है।
 
लोग तो और भी हैं महफ़िल में,
यार हम पर ही क्यों निशाना है।