भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेंधमार / गुलशन मधुर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 13 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलशन मधुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय के बीतने के साथ
कितने भी हो चुको निरपेक्ष
वृत्तियों को साध कर
स्वयं को कर लिया हो
किसी भी सीमा तक वीतराग
उतार-चढ़ावों ने थका-उबा कर
तुम्हें बना दिया हो
आंसुओं और मुस्कराहटों से
कितना भी उदासीन
किसी ढीठ बच्चे की तरह
अपनी बात मनवा ही लेता है वह

खोज ही लेता है कोई चोर-रास्ता
तुम तक पहुंचने का

होने का कोई न कोई
बहाना ढूंढ ही लेता है
दुराग्रही दुख