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कभी जब अकेले हुए हम / गुलशन मधुर
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कभी जब अकेले हुए हम
तो सपनों के मेले हुए हम
अंधेरों में जब भी घिरे हैं
ख़ुद अपने उजेले हुए हम
बड़ी उत्सवी शाम थी वह
बहुत ही अकेले हुए हम
हवा क्या डराएगी हमको
बगूलों को झेले हुए हम
धुले ऐसे पलकों के जल से
नवेले नवेले हुए हम