भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वीर तुम बढ़े चलो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:54, 8 अक्टूबर 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे

ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी स्र्के नहीं

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो

सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए

मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा

यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !