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स्त्री का सौंदर्य / सांत्वना श्रीकांत
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स्त्री ने अपने पाँव के नाखून को ध्यान से देखा
सौन्दर्य की परिभाषा का स्व आकलन किया
रोटी की गोलाई और ब्रह्मांड के आकार में, अंतर खोजा
आँखों के नमक और समुद्र के खारेपन की तह तक थाह ली
पाया कि
प्रकृति का समर्पण 
और वह स्त्री पूरक थे ।
पूर्णता की समस्त परीक्षा में 
अव्वल आने पर ही चुना गया था उसे । 
देर तक सोचती रही…
प्रेम हमेशा अपूर्ण ही क्यों रहा उसके लिए
 कभी ईश्वर का  गूँगापन कोसती 
कभी प्रेमी के के स्वभाव को 
दरअसल वह प्रेम की अपूर्णता 
और अपने अभागेपन में  अपूर्ण होती गई।
	
	