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तुम्हारी ही देह के पंचतत्त्व में... / सांत्वना श्रीकांत
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तुम्हारे माथे पर
होठों की गोलाई के सहारे अंकित करूँगी कई आकाशगंगाएँ
तुम्हारा अपूर्ण नभ
बन जाएगा मेरे ब्रह्मांड का विस्तार
आँखें मूँदोगे तो झिलमिल होंगे कई तारे
चाँद भी साथ अठखेलियाँ करेगा
भोर के स्वागत में
मेघपुष्प बन सिंचित करूँगी
अधरों की अभिलाषा
जिजीविषा आच्छादित होगी चेहरे पर उस पल
आलिंगन का उजास छा जाएगा देह पर
अभिसार का सुख
परिवर्तित होगा पूर्णता में
तुम्हारी छाती पर
फैल जाऊँगी नवांकुर के ममत्व- सी
तुम्हारी पंचाग्नि में समर्पित होकर
विलीन हो जाऊँगी
तुम्हारी ही देह के पंचतत्त्व में....