भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपना होकर आपके लिए / अजय कुमार

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:06, 17 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> मेरे पास दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे पास
दो तरीके हैं
खुद को मापने के
पहला मैं जब भी कुछ कहूँ
हर बार आपका
चेहरा देखूँ
और फिर जो भी मिले
मुस्कुराहट, खीज
गुस्सा या तल्ख़ी
उसके हिसाब से
खुद को हर बार ठीक करूँ
हर बार खुद को बदलूँ

दूसरा- मैं बस
अपने भीतर
कदम- कदम
गहरे और गहरे उतरता जाऊँ
और हर बार निकाल लाऊँ
कुछ नया
जैसे कोई मोतिया गज़ल
सुरीला कोई गीत
एक हीरों जड़ी नज्म
या खुले बालों वाली
आजाद ख्याल लड़की
जैसी कविता या कहानी
और उनको पतंगों
की तरह हवा में छोड़ दूँ
फिर मर्ज़ी उनकी
चाहे जिस छत पर गिर जाएँ
उड़ती रहें समय के पंख लगाकर
या कटें और गली -गली
लूट ली जाएँ

मैं दरअसल दूसरों की
प्रतिक्रियाओं में नहीं
अपने मन की दुनिया में
जीना चाहता हूँ
मैं दूसरा बन के
दूसरों के लिए नहीं
बल्कि अपनी तरह
अपना होकर फिर
आपका होना चाहता हूँ.....