दोहे-2 / मनोज भावुक
कोयलिया जब-जब रटे काम-तंत्र के जाप।
तब-तब हमरो माथ पर चढ़िये जाला पाप॥11॥
मादकता ले बाग में जब वसंत आ जाय।
कांच टिकोरा देख के मन-तोता ललचाय॥12॥
तन के बुझे पियास पर मन ई कहाँ अघाय।
ई ससुरा जेतने पिये ओतने ई बउराय॥13॥
गड़ी, छुहाड़ा, गोझिया भा रसगुल्ला तीन।
के तोहसे बा रसभरल, के तोहसे नमकीन॥14॥
चढ़ल ना कवनो रंग फिर जब से चढ़ल तोहार।
भावुक कइसन रंग में रंगलs अंग हमार॥15॥
आग लगे एह फाग के जे लहकावे आग।
पिया बसल परदेश में, भाग कोयलिया भाग॥16॥
लहुरा देवर घात में ले के रंग-गुलाल।
भउजी खिड़की पर खड़ा देखें सगरी हाल॥17॥
अंगना में बाटे मचल भावुक हो हुड़दंग।
सब के सब लेके भिड़ल भर-भर बल्टी रंग॥18॥
साली मोर बनारसी, होठे लाली पान।
फागुन में अइसन लगे जस बदरी में चान॥19॥
कबो चिकोटी काट के जे सहलावे माथ।
कहाँ गइल ऊ कहाँ गइल, मेंहदी वाला हाथ॥20॥