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एक संगीतमयी दस्तक / अमरजीत कौंके
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वैसे तो शोर नहीं भाता मुझे
लेकिन फिर भी अच्छी लगती
घर में छन-छन छनकती
मेरी बीवी की पाजेब
पत्थर पर गिरती है जैसे
पानी की बूँद लगातार
ठहरी हुई रात पर
ठकठकाता है जैसे
दीवार घड़ी का पेंडुलम निरंतर
उसी तरह
मेरी खामोशी पर
एक संगीतमयी दस्तक है
पाजेब
मुझे घर लौटा लाने के लिए
सुदृढ़
मेरी तन्हाई में
किसी के
बिलकुल नज़दीक होने का
अहसास देती है
पाजेब।