भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यकीन / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 11 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |अनुवादक= |संग्रह=आक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इस मौसम की
बदसूरती के खिलाफ़
मैं इतना करूंगा
कि मैं उखाड़ कर फेंक दूँगा
गमलों में उगे तुम्हारे कैक्टस
और बोऊँगा इस मिट्टी में
सूरजमुखी के बीज
तुम देखोगे
कि इसी मिट्टी में
जहाँ उगे थे तुम्हारे
कँटीले कैक्टस
वहीं उगेंगे सूरजमुखी
जो इन अँधेरी रातों में देंगे
चेतना के बंद दरवाजों पर दस्तक
इस मौसम की
बदसूरती के ख़िलाफ
मैं इतना करूंगा
कि मैं अपने घर में पालूंगा
एक कोयल
जिस की आवाज़ टकराएगी
इन काली ख़बरों के साथ
और यकीन है मुझे
कि लौटेगी विजयी होकर
इस मौसम की
बदसूरती के ख़िलाफ
मैं अपने बच्चों के
होठों पर बांसुरी
और हाथों में पुस्तकें रखूँगा
मैं बस इतना करूँगा।