भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाभि में / पीयूष दईया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:08, 11 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |संग्रह= }} <Poem> सच है मुझे जिस्म की तलाश...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच है
मुझे जिस्म की तलाश कभी नहीं रही
सब मिलतीं चली गईं
मै भोगता रहा
--प्यार

काश! धूल झोंकता समय
अपना पाता

छूट गया जो
जिस्म की नाभि में
अमर है