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फूल कनेर के / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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किसने रोके पाँव अचानक
धीरे-धीरे टेर के ।
उजले –पीले भरकर आए-
लो आँगन फूल कनेर के
 
दिन भर गुमसुम सोई माधवी
तनिक नहीं आभास रहा ;
घिरा अँधेरा खूब नहाई
सुरभि- सरोवर पास रहा ।
 
पलक बिछाए बिछे धरा पर
प्यारे फूल कनेर के।
 
बौराया मन चैन ना पाए
व्याकुल झुकती डाल –सा
पीपल के पत्ते-सा थिरके
हिलता किसी रूमाल-सा
 
चोर पुजारी तोड़ भोर में ,
ले गया फूल कनेर के ।
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