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मेहँदी रचे दो पाँव / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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धर लिये थे गोद में
मेहँदी रचे दो पाँव
नीर नयनों से बहा
और मन पावन हो गया।
धुल गए
अवसाद सारे
धूल जीवन की धुली,
खिड़कियाँ बरसों से
बन्द थीं,
वे अचानक जब खुलीं,
परस दो पल जो मिला
सहरा में सावन हो गया।
अधर -पुट ने छू लिया
चाँद जैसे भाल को,
जीत लेती साधना
जैसे घुमड़ते काल को;
एक पल मुझको मिला
जो,मन-भावन हो गया।
चमक बिछुए की मिली
कि भाव दर्पण था सजा ,
इस एकाकी हृदय में
गीत गन्धर्व का बजा ,
इस जनम में तुम मिले
मन वृन्दावन हो गया।
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