भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसी को दुख नहीं होता / फ़िरदौस ख़ान
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 28 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िरदौस ख़ान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
किसी को दुख नहीं होता, कहीं मातम नहीं होता
बिछड़ जाने का इस दुनिया को कोई ग़म नहीं होता
जगह मिलती है हर इक को कहाँ फूलों के दामन में
हर इक क़तरा मेरी जां क़तरा-ए-शबनम नहीं होता
हम इस सुनसान रस्ते में अकेले वह मुसाफिर हैं
हमारा अपना साया भी जहाँ हमदम नहीं होता
चरागे-दिल जला रखा है हमने उसकी चाहत में
हज़ारों आंधियाँ आएँ, उजाला कम नहीं होता
हर इक लड़की यहाँ शर्मो-हया का एक पुतला है
मेरी धरती पर नीचा प्यार का परचम नहीं होता
हमारी ज़िन्दगी में वह अगर होता नहीं शामिल
तो ज़ालिम वक़्त शायद हम पर यूं बरहम नहीं होता
अजब है वाक़ई 'फ़िरदौस' अपने दिल का काग़ज़ भी
कभी मैला नहीं होता, कभी भी नम नहीं होता