इस दुनिया में
जैसे भी हो
तुम उतना ही पाओगे।
जितने पल तक
निर्भय होकर
जितना विष तुम पी जाओगे।
जीना है यदि
कोई मजबूरी
कर लो कम विष से अपनी दूरी
विषधर फैले यहाँ-वहाँ
तुम खुद को कहाँ छुपाओगे।
मन है जब तन में
रोना होगा
जितना पाया
उतना खोना होगा
गीतों में है
जब दर्द भरा
हँसी कहाँ से फिर लाओगे।
(9-11-2001: वस्त्र-परिधान अंक 48)