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हँसें दु:खों पर /रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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हर डगर के
पाँवों में छाले
गलियारों की आँखें नम
जाने कब
सूरज निकलेगा
कब बदलेगा,यह मौसम ।

मायावी हैं
सभी सरोवर
कैसे अपनी
प्यास बुझाएँ
प्रश्न यक्ष ने
अनगिन पूछे
ढूँढ कहाँ से
उत्तर लाएँ
प्यास सभी के
हिस्से आई,
कुछ के ज़्यादा, कुछ के कम ।

समय हुआ
 दुष्यन्त हमारा
भूल गया सब
रिश्ते-नाते
विश्वासों पर
चोट पड़ी है
घाव भला
कब तक
सहलाते ।
आओ इतना
हँसें दुःखों पर
घबरा जाए हर मातम ।
-0-(24-5-92:तारिका-जुलाई-92,रूपा की चिट्ठी दिस92)