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जंगल में मोर नाचा क्यों देखना / अशोक शाह

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यदि नहीं हो तुम्हारे पास अपना कुछ भी मौलिक
तो रहने दो मुझे उदास
हाँ, मैं जंगल में मोर की तरह नाचना चाहता हूँ
तुम्हारे देखने की कोई अपेक्षा नहीं
तुम्हारे देखने से भंग होती निजता मेरी
नहीं होती इज़ाफा मेरी ख़ूबसूरती में
ज़रा भी

तुम्हारे बाज़ार के भरोसे
नहीं खिलते वनों में असंख्य कुसुम
न ही आसमान नीला हैं ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट के कारण
क्यों करूँ परवाह
कि जंगल के लय गति गंध ताल
तुम्हारे काम के नहीं

पृथ्वी के जिस भी हिस्से को तुमने छुआ
धर्म और गेहूँ से भर दिया
अपनी हथेलियों पर रखकर
तुम चुगाते हो दाना
तुम्हें याद रहना चाहिए
वह मेरी स्वतंत्रता थी
जिसे तुमने मानवीय ढंग से चुरा लिया

छोड़ दो मुझे अकेला
मरे हुए किसी देश का मैं राष्ट्रीय स्मारक नहीं
मेरा जीवन तुम्हारी भीड़ की आहुति भी नहीं
तुम्हारे विकास के पंजे से मुक्त इस धरती पर
जो बचा है, वही सुन्दर है

नहीं चाहता
गर्म होती धरती के ताप में हो मेरी कोई हिस्सेदारी
तुम्हारे स्वार्थ निमज्जित परोपकार की नौटंकी में
नहीं चाहता
अपनी कोई भी भूमिका
रख लो तुम रजिस्ट्री सारी धरती की
पर सुमनों की सुगन्ध सारी मेरी है
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