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कुण्डलिया-3 / बाबा बैद्यनाथ झा

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शुभ मंगल यदि चाहते, करें श्रेष्ठ सब काम।
दीन जनों के दुख हरें, खुश होंगे श्री राम॥
खुश होंगे श्री राम, भक्ति भी उनकी कर लें।
पुनि चारों पुरुषार्थ, प्राप्त कर झोली भर लें॥
जो करता अपकर्म, वही करवाता दंगल।
कर लें अवगुण दूर, सदा होगा शुभ मंगल॥

होते हैं दुष्कर सदा, पत्रकार के काम।
दिन भर खटते रात में, सहज नहीं आराम॥
सहज नहीं आराम, खबर वे ढूँढा करते।
हो दुर्गम भी क्षेत्र, नहीं जाने से डरते॥
हालत हो विपरीत, नहीं वे साहस खोते।
पत्रकार जो श्रेष्ठ, सदा सम्मानित होते॥

खिलते प्रायः ग्रीष्म में, गुलमोहर के फूल।
मिलते हैं प्रेमी युगल, देख समय अनुकूल॥
देख समय अनुकूल, लालिमा इसकी भाती।
होता प्रेम प्रगाढ़, स्वर्ग सम दृश्य सजाती॥
पाते हैं आनन्द, यहाँ पर जो भी मिलते।
अनुपम अद्भुत पुष्प, उष्ण मौसम में खिलते॥

रहते हैं कुछलोग बस, पर निन्दा में लीन।
उन्हें प्रशंसा अन्य की, लगती है रसहीन॥
लगती है रसहीन, द्वेष ईर्ष्या से जलते।
हो जाते बेचैन, सदा विष मात्र उगलते॥
मारेंगे वे डींग, श्रेष्ठतम खुद को कहते।
निज श्लाघा में मत्त, आदमी प्रायः रहते॥

वैसे नौ रस मात्र ही, कहते हैं विद्वान।
निन्दा रस को आप हम, लें दसवाँ रस मान॥
लें दसवाँ रस मान, भिज्ञ जो इसका होता।
करता रहता जाप, रात में भी जब सोता॥
रहता खुद में तृप्त, विदूषक होते जैसे।
निज त्रुटियों पर ध्यान, नहीं जा सकता वैसे॥

निन्दा जो करता रहे, रखिए उसको पास।
कर देगा वह आपका, सर्वांगीण विकास॥
सर्वागीण विकास, कमी हर दूर भगाएँ।
रहें आप साकांक्ष, चेतना नित्य जगाएँ॥
हित अनहित का ज्ञान, रखे पशु और परिन्दा।
कर लें आप सुधार, सुनें जब अपनी निन्दा॥