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मुक्तक-2 / बाबा बैद्यनाथ झा

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दूर में दिखता किनारा तो कहो वह क्या करे
मिल नहीं पाता सहारा तो कहो वह क्या करे
लाख हाथों को हिलाये कौन पहुँचेगा वहाँ
भाग्य का डूबा सितारा तो कहो वह क्या करे

देख सावन आ गया है बोलिए बमबम
शिव हरेंगे सब दुखों को कष्ट होंगे कम
भक्त पर करते कृपा उद्धार कर देते
नाचते डमरू बजाकर स्वर मधुर डमडम

देखो धरती पर पसरी यह सावन की हरियाली है
नाच रही मदमत्त मयूरी लगती वह मतवाली है
साजन निज सजनी को लेकर मस्ती में है घूम रहा
नाच रहा कजरी के धुन में पर गाता क़व्वाली है