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मुक्तक-3 / बाबा बैद्यनाथ झा

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किसी भी नौकरी में तो ज़रूरी जी हजूरी है
नहीं तो लाख हो सेवा मगर रहती अधूरी है
बने जब शर्त आपस में निभाना लाजि़मी होता
किसी अनुबंध का पालन हमेशा ही ज़रूरी है

आपदा आए कभी तो, आप मत घबड़ाइए
संकटों से जूझने का, खूब साहस लाइए
शौर्य उद्यम और धीरज, से हमेशा काम लें
सिद्धियाँ मिलने लगेंगी, तो नहीं इतराइए

घर में कुछ दौलत नहीं, व्याकुल रहते कन्त
नहीं काम करता कभी, सुख की चाह अनन्त
पत्नी जो थी चल बसी, हुआ खूब लाचार
छोड़ गाँव घर द्वार तब, बनते हैं ये सन्त