भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं सर्जना करता रहा / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 22 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शारदे की नित्य ही मैं
अर्चना करता रहा।
प्रेरणा पा छंद की मैं
सर्जना करता रहा॥

आज तक अल्पज्ञ हूँ
पर मातु का मैं भक्त हूँ,
व्याधियों से ग्रस्त हूँ
पर छंद पर अनुरक्त हूँ।
कष्ट में जब पुत्र हो तो
कौन देगा ध्यान माँ,
आपदा हर ले सभी की
माँगता वरदान माँ।

विश्व हित हो इसलिए
मैं याचना करता रहा।
प्रेरणा पा छंद की मैं
सर्जना करता रहा॥

गीत के हों भाव सारे
विश्व के कल्याण के,
प्रार्थना के शब्द भी हों
आपदा से त्राण के।

देश हित ही हों हमारे
प्राण का उत्सर्ग जब,
आ सकेगा इस धरा पर
देख लेना स्वर्ग तब।

काम आऊँ देश के यह
कामना करता रहा।
प्रेरणा पा छंद की मैं
सर्जना करता रहा॥

द्वेष मन का तब मिटेगा
जग लगे परिवार जब,
पापियों का नाश हो माँ
दुष्ट का संहार अब।
कालिका का रूप धर कर
दानवों को मार माँ,
स्थापना कर शान्ति की,
हो विश्व का उद्धार माँ।

व्याधि कोरोना हटाने
वंदना करता रहा।
प्रेरणा पा छंद की मैं
सर्जना करता रहा॥