भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम इतना क्यों बदल गये / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 22 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राहों में जब फिसल गये।
तुम इतना क्यों बदल गये।

साथ-साथ बचपन बीता,
कभी नहीं हारा जीता,
दिखा कभी भी भेद नहीं,
किया प्रगट भी खेद नहीं,

किस माया में बहल गये।
तुम इतना क्यों बदल गये॥

तुम रोते तो मैं रोता,
धैर्य नहीं कोई खोता,
लगते थे तुम भाई सा,
दिखते अभी कसाई सा,

मेरे दिल से निकल गये।
तुम इतना क्यों बदल गये॥
कुछ कुत्सित करतूतों से,
आँखों देख सबूतों से,
घृणा जगी सबके मन में,
आग लगायी उपवन में,
जीव जन्तु सब दहल गये।
तुम इतना क्यों बदल गये॥

आदत गलत सुधारो अब,
परहित में तन वारो अब,
पहले जैसा बन जाओ,
संग बाँट मिलकर खाओ,

बोलो क्या तुम सँभल गये?
तुम इतना क्यों बदल गये॥