भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समग्र के विकास में / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 22 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिले नहीं यहाँ कभी,
ग़रीब आसपास में।
प्रसन्नता हमें मिले,
समग्र के विकास में॥

अमीर चन्द लोग ही,
यहाँ दिखे सुखी अभी।
सभी ग़रीब दीखते,
दरिद्र या दुखी सभी।
उन्हें नहीं मिले कभी,
मकान चन्द रोटियाँ।
बना रहे नयी-नयी,
अमीर लोग कोठियाँ।

सुगंधि इत्र छींटते,
विराजते निवास में।
प्रसन्नता हमें मिले,
समग्र के विकास में॥

अज़ीब प्रश्न घूमता,
हरेक के दिमाग में।
कभी न बाँटते ख़ुदा,
हमें विभिन्न भाग में।
सदैव श्रेष्ठ भाग्य तो,
मिले हमें सुकर्म से।
दरिद्रता अपंगता,
सदा बने कुकर्म से।

करें नहीं विरोध भी,
अधीर हो उदास में।
प्रसन्नता हमें मिले,
समग्र के विकास में।

करें सुकर्म आप भी,
भविष्य को सँवार लें।
कमी रही जहाँ कहीं,
सुधार से उबार लें।
जपा करें हरे हरे,
मुरारि कृष्ण राम को।
करें शुरू पुकारते,
किसी नवीन काम को।

सहायता करें वही,
लगे रहें प्रयास में।
प्रसन्नता हमें मिले,
समग्र के विकास में।