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करें अभिसार / बाबा बैद्यनाथ झा

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फुलाई खेत में सरसों सदृश यह गात।
बनी हो पीत वसना तुम खुशी की बात॥
चलें उपवन वहाँ घूमें करेंगे प्यार।
सरस मधुमास है आया करें अभिसार॥

गया हेमन्त दुखदायी सताकर खूब।
समय का चक्र घूमेगा बताकर खूब॥
शिशिर में झड़ गये पत्ते विटप थे नग्न।
खिले हैं अब सभी किसलय दिखें सब मग्न॥

नियति का खेल यह जग का बना आधार।
सरस मधुमास है आया करें अभिसार॥

खिलीं अब बाग में कलियाँ भ्रमर हैं लुब्ध।
कुहकती प्रेम से कोयल करे मन मुग्ध॥
सुगंधित आम्र मंजरियाँ लुभातीं आज।
प्रकृति भी नृत्य है करती सजाकर साज॥

बुलाती है हमें करके मधुर मनुहार।
सरस मधुमास है आया करें अभिसार॥

बिहँसता आज रतिनायक शरों को थाम।
चलाकर बाण पुष्पों का जगाता काम।
नहीं टिकता अभी संयम विकल हैं संत।
पसरती तीव्र मादकता न कर दे अंत॥

बने सब जीव ही बेसुध दिखें लाचार।
सरस मधुमास है आया करें अभिसार॥