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आई ऋतु नवल / कविता भट्ट

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आई ऋतु नवल डॉ. कविता भट्ट

कली बुराँस अब नहीं है उदास आया वसंत ठिठुरन का अंत मन मगन हिय है मधुवन सुने रतियाँ पिय की ही बतियाँ मधु घोलती कानों में बोलती प्रेम-आलाप सुखद पदचाप स्फीत नयन तन -मन अगन अमिय पान चपल है मुस्कान ये दिव्यनाद नयनों का संवाद अधर धरे उन्मुक्त केश वरे तप्त कपोल उदीप्त द्वार खोल हुई विह्वल इठलाती चंचल आई ऋतु नवल। -0-