Last modified on 6 फ़रवरी 2023, at 22:57

तुम अमृत-कूप / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:57, 6 फ़रवरी 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

54
तुम्हारा प्यार-
इसके आगे बौना
नभ -विस्तार।
55
सिन्धु गहरा
तेरे प्यार के आगे
कब ठहरा!
56
जितनी दूर
उतने ही मन में
हो भरपूर।
57
अंक में तुम
जगभर की पीर
पल में गुम।
58
चूमे नयन
पोर -पोर में खिले
लाखों सुमन।
59
तुम्हारे बैन
दग्ध हृदय को दें
पल में चैन।
60
चूमे नयन
रोम -रोम पुलकित
स्वर्गिक सुख।
61
उजली भोर
बिखर गई रुई
चारों ही और।
62
लोग कुरूप
तुम अमृत-कूप
सदा स्रवित
-0-