मेरा जीवन गीत / बाबा बैद्यनाथ झा
प्रभु की कृपा बनी थी मेरे, जीवन में खुशहाली थी।
साथ निभाने वाली माता, जब कुलदेवी काली थी॥
जब सरकारी सेवा में था, कभी नहीं बीमार हुआ।
लगता था सारी खुशियों पर, मेरा ही अधिकार हुआ।
पर किस्मत की बात जगत में, कौन भला पहचान सका।
मैं भी कर्तापन के मद में, नहीं कृष्ण को जान सका।
दुर्दिन की इक आँधी आयी, ऐसा झंझावात हुआ।
माथे की नस फट जाने से, फिर मस्तिष्काघात हुआ।
कई व्याधियाँ एक संग आ, कर इतना व्याघात दिया।
मार दिया था सबने मिलकर, उस पर पक्षाघात दिया।
उस अप्रत्याशित घटना से, आयी तब बदहाली थी।
सारे डॉक्टर हार गये थे, बाक़ी मात्र निराशा थी।
रोदन-क्रन्दन शुरू हो चुका, शेष नहीं अब आशा थी।
उठा पूर्णियाँ से इस शव को, सिल्लीगूड़ी पहुँचाया।
पाँच दिनों तक पैसे लूटे, मात्र वहाँ भी भरमाया।
साहस कर फिर बच्चों ने ही, मुझे मुम्बई पहुँचाया।
वहाँ हिन्दुजा अस्पताल में, इस शव को था दे पाया।
सब निराश डॉक्टर ने फिर भी, आस सभी को बँधवायी।
आईसीयू में भर्ती कर, शुरू चिकित्सा करवायी।
बेटों ने साहस दिखलाया, पत्नी हिम्मतवाली थी।
डॉक्टर बी. के. मिश्रा ने फिर, हाथ लगाया अपना जब।
बचना मेरा मुश्किल ही था, सबको लगता सपना तब।
शल्यक्रिया फिर उनके द्वारा, ही मस्तक की हो पायी।
धीरे-धीरे उनकी विद्या, ने दिखलाई निपुणायी।
डेढ़ महीने से कुछ ज्यादा, शव बनकर मैं पड़ा रहा।
मृत्यु देवता भी निज जिद पर, बिल्कुल था वह अड़ा रहा।
क्या बतलाऊँ चमत्कार फिर, इकदिन ऐसा हो पाया।
यह मुर्दा कुछ ज़िन्दा होकर, कुछ पल जगकर सो पाया।
क्षणिक कृपा कर इष्टदेव ने, विपदा मेरी टाली थी।
उसदिन से क्रमशः ही मेरा, होने लगा सुधार वहाँ।
प्रभु की कृपा बनी थी मुझपर, किया बहुत उपकार वहाँ।
चला महीनों तक इलाज फिर, स्वस्थ हुआ मैं घर आया।
अब पहले से भी चंगा हूँ, लगता प्रभु का वर पाया।
उसदिन से चल रही चिकित्सा, आज तलक भी जारी है।
लेखन में हूँ आज समर्पित, नहीं ज़िन्दगी हारी है।
आज चिकित्सा की दुनिया में, ये डॉक्टर वरदान बने।
मेरे जैसे को ज़िन्दा कर, आये हैं भगवान बने।
यद्यपि अपव्यय हो जाने से, जेब हमारी खाली थी।
प्रिय डाॅक्टर मिश्रा बसन्त को, देता आशीर्वाद सदा।
जिएँ हजारों साल जगत में, रह नीरोग आबाद सदा।
श्रेष्ठ चिकित्सक इनके जैसे, जग में विरले मिलते हैं।
जिनके बल पर मृत तरुओं में, अमर पुष्प नित खिलते हैं।
एक चिकित्सक जीवनदाता, भी कहलाये जाते हैं।
वही यहाँ अमरत्व प्राप्त कर, सबसे आदर पाते हैं।
कृपा प्राप्त कर सरस्वती की, मैं छंदों को रच लेता।
ब्रह्म और गुरु के चरणों को, श्रेय समर्पित कर देता।
भुला रहा हूँ उस घटना को, जो काँटों की डाली थी॥