क्यों यौवन-उन्माद / बाबा बैद्यनाथ झा
दो कलियाँ करतीं आपस में, प्रेमयुक्त संवाद।
भौरों के गुंजन से बढ़ता, क्यों यौवन उन्माद?
सुक्ष्म कली से क्रमशः बढ़ता, प्रतिदिन जब आकार।
कहो उपजने क्यों हैं लगते, मन में कई विचार?
जगने लगतीं अभिलाषाएँ, पुनः पनपता प्यार।
आलिंगन में बद्ध सजन हो, मिले मधुर उपहार।
एक अपरिचित प्रियतम की क्यों, आने लगती याद।
भौरों के गुंजन से बढ़ता, क्यों यौवन उन्माद?
सदुपयोग यौवन का करना, होता है अनिवार्य।
करना हो यदि पूर्ण मनोरथ, करो विहित हर कार्य।
इच्छाओं का अंत नहीं है, उस पर लगे लगाम।
लक्ष्य अगर पूरा हो जाए, तब होता है नाम।
खुश रहने पर कभी न होगा, जीवन में अवसाद।
भौरों के गुंजन से बढ़ता, क्यों यौवन उन्माद?
मिले रूप सौन्दर्य किसी को, मत होने दे व्यर्थ।
अवसर बीत रहा हो निष्फल, होगा घोर अनर्थ।
उचित कार्य हो सही समय पर, रखना है यह ध्यान।
यद्यपि आते ही रहते हैं, विविध भाँति व्यवधान।
जीवन साथी बिना जवानी, हो जाती बर्बाद।
भौरों के गुंजन से बढ़ता, क्यों यौवन उन्माद?