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सूर्योदय / बलदेव वंशी

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सुरमई अंधकार था--
मछुआरी खपरैलों पर बिछा-बिछा
टूटि नवों पर रोया-सोया
भीतर-बाहर लिखा-दिखा
समूचे सागर पर अछोर
इसे बेचने आते हैं त्रिनेत्र !

लो !
देखते-देखते
आरक्त हो उठी
प्रति दिशा-दिशा
रंग गई प्रति लहर-लहर
खिल-खिला उठा राग-
अब जीवन जल
पुन: छलल छलल छलल...