भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द की समझ / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:23, 22 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=धरत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शब्द अपने कन्धों पर
उम्मीद की बोरियाँ उठा कर
चलते रहते हैं दिन-रात नंगे पाँव
वे आते हैं चुपचाप
कविताओं से प्यार करने
जान चुके हैं वे-
मनुष्य ही थपथपा सकता है
उनके थके कंधों को
तमाम देवता नहीं समझते
कविता की भाषा।