भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने उम्र गुज़ार दी.. / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
बिल्कुल आसान था
नागफनी उगाना
मगर मैं न उगा सकी।
मेहनत का काम था;
फूल उगाना
मगर क्या करूँ ?
मुझे फूलों से प्यार इस क़दर था
कि दिल की ज़मीं सींचने में
मैंने उम्र गुज़ार दी।
मुस्काते फूलों को रौंदकर
वे ख़ुद को बागवान कहते रहे।
-0-
पाली अनुवाद:अहमायू अतीता
रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:
अनुवादक:राम प्रताप सिंह
अतिस्सरलमासीच्च
नग्गफनीयम वरधियम
परमहम वरधितुम नासक्कम
परिसमस्स कारमासीच्च पुप्फवरुधम।
किञ्करन्नानि परम ।
मम पुप्फपीती इतासीच्च यद
हिरिद्दीभूमीसिच्चने अहमायू अतीता ।
मितानी पुप्फानी रदनञ्किता ये अत्तमीसम कथयनुद्दानपालक इति कथयन्ती ।
--0-