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पेड़ की डायरी (दो) / कुमार कृष्ण

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मैं किसान का हल राजा की कुर्सी
बुजुर्ग की लाठी हूँ
मैं हूँ घर, अखबार, दरबार हूँ
मैं हूँ आग, हवा, मैं पानी हूँ
मैं हूँ मिठास, बाँसुरी, पालकी हूँ मैं
वर्णमाला की तख्ती, नौका, देवता हूँ मैं
मैं रहता हूँ तुम्हारे अन्दर अन्तिम साँस तक
मैं हूँ धूप में तपती रोटियाँ
बैलगाड़ी इस धरती पर
आग पर पकता भात हूँ मैं
मैं हूँ धरती का हरा दुपट्टा
इन्द्रधनुष हूँ मैं
तुम भूल चुके हो-
मैंने छुपा कर रखे हैं अपनी जड़ों में
नदियों के आँसू
समझो पेड़ और प्राण का रिश्ता
समझो पिता-पुत्री का सम्बन्ध
मत करो धरती का अनुबन्ध।