भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धेवती के साथ सम्वाद / रसूल हम्ज़ातव / साबिरद्दीन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 25 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव |अनुवादक=साबिरद्द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू क्यों सुबके-रोए, बच्ची
तू क्यों सुबके-रोए !
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ, बच्ची
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ;

छोड़ मुझे माँ-बाप सिधारे
खड़ी यतीमी हाथ पसारे

तू क्यों सुबके-रोए, बच्ची
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ;

जंग में भाई मैंने खोए
वीर हज़ारों रण में सोए

मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ, बच्ची
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ;

तू क्यों सुबके-रोए बच्ची
तू क्यों सुबके-रोए !

यह सब सुनके बोली बच्ची
नाना, बात तुम्हारी सच्ची
लिखते-पढ़ते गाते तुम हो
सृजन की दुनिया में गुम हो
मेरी उम्र पड़ी है आगे
क़िस्मत कौन दिशा ले भागे

कुछ भी जान न पाऊँ, नाना
कुछ भी समझ न पाऊँ,
बस रोऊँ-चिल्लाऊँ, नाना
बस रोऊँ-चिल्लाऊँ !

बस रोऊँ-चिल्लाऊँ !