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सारस / रसूल हम्ज़ातव / श्रीविलास सिंह

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कभी कभी मैं सोचता हूँ कि सैनिक, जो कभी
वापस नहीं आए हम तक रक्तरंजित मैदानों से,
बच न पाए युद्धभूमि से और कर न पाए पार नदी को,
लेकिन इसकी जगह
जो बदल गए श्वेत चीख़ते सारसों में ।

और उसी समय से उड़ रहा है वह झुण्ड - संकरी
या चौड़ी, अथवा लम्बी पंक्ति में — और सम्भवतः इसी कारण
अक्सर और आकस्मिक शोक के साथ
हम रुक जाते हैं एकाएक, देखते हुए आकाश की ओर ।

उड़ते हैं त्रिभुजाकार झुण्ड अतिक्रमण करते प्रत्येक सीमा का —
एक दुखी संरचना, सा-रे-गा-मा की श्रेणियाँ,
एक रिक्ति है उनकी खुली पंक्तियों में :
क्या यही है वह स्थान जो उन्होंने आरक्षित रखा है मेरे लिए ।

वह दिन भी आएगा : जब साँझ के बादलों के नीचे
मैं उड़ूँगा,
सारस होंगे मेरे दाहिने, मेरे बाएँ
और उन्हीं जैसी तीखी और तीव्र आवाज़ में,
पुकारूँगा, पुकारूँगा उन्हें जो हैं धरती पर
कि जा चुका हूँ मैं ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
               Расул Гамзатов
                     Журавли

Мне кажется порою, что солдаты,
С кровавых не пришедшие полей,
Не в землю эту полегли когда-то,
А превратились в белых журавлей.

Они до сей поры с времен тех дальних
Летят и подают нам голоса.
Не потому ль так часто и печально
Мы замолкаем, глядя в небеса?

Сегодня, предвечернею порою,
Я вижу, как в тумане журавли
Летят своим определенным строем,
Как по полям людьми они брели.

Они летят, свершают путь свой длинный
И выкликают чьи-то имена.
Не потому ли с кличем журавлиным
От века речь аварская сходна?

Летит, летит по небу клин усталый —
Летит в тумане на исходе дня,
И в том строю есть промежуток малый —
Быть может, это место для меня!

Настанет день, и с журавлиной стаей
Я поплыву в такой же сизой мгле,
Из-под небес по-птичьи окликая
Всех вас, кого оставил на земле.