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तुम्हारी तलाश में / रश्मि विभा त्रिपाठी

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चली गई थीं
मुझसे बिना मिले
सालों पहले
तबसे आज तक
हर राह पे
तुम्हारी तलाश में
भटककर
मेरे ये पाँव छिले
ये भी सच है
तुमने पुकारा था
आख़िरी वक़्त
बेचैन होकरके
मेरा ही नाम
वो आख़िरी सलाम
करना चाहा
तो भी न कराहा
किसी का दिल
सुना था सबने ही
मगर मुझे
ख़बर तक न दी
दूर देश में
मेरी दुनिया लुटी
रूह तड़पी
साँस सीने में घुटी
करूँगी गिला
मरते दम तक
उन बेदर्द,
पत्थर दिलों से मैं
पर क्या कहूँ
उन कातिलों से मैं
तुम आस्माँ से
देख तो रही हो ना?
आज देख लो
वे ही कहते मुझे
धमकाकर
कि मेरा हक दिला
छोड़ गई हो
तुम अपने हिस्से
मायके में जो
मकान दोमंजिला
ओ मेरी जान!
तुम चुप रही हो
उमर भर
पीकरके जहर
उनका दिया
सारा जीवन जिया
बनके मीरा
शक्ल तुम्हारी काली
देखी सबने
तुम्हारा मन- हीरा
किसने देखा?
मुझे बताओ तुम
ससुराल में
किसी के प्यार ने क्या
सींचा पल को
तुम्हारा मन खिला?
चुभाते रहे
पल- पल काँटे ही
कभी तुम्हारे
उन जख़्मों को सिला?
कैसे तुम्हारी
आँतें बाहर आईं?
अल्सर था वो?
जिस- जिस सीने में
दिल था, वह
तुम्हें देखके हिला
बोलो सौंप दूँ
तुम्हारी ये दौलत
उन्हें, जिन्होंने
मार दिया तुमको
बेवक्त में ही
तुम्हें न दी थोड़ी भी
जीने की मोहलत!