भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निज की खोज / शील
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 17 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शील |अनुवादक=लाल पंखों वाली चिड़ि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जी करता है, खोजूँ निज को,
नैसर्गिक निजत्व के –
अक्षर भापूँ ।
स्वाह-सुधा ऋचाएँ मापूँ ।
जी करता है, जल-सा उछलूँ
नभ को नापूँ –
खोजूँ निज को ।
जी करता है ...
मृत्युजयी प्रकाश पहिनकर –
लोक-लोक आलोक निहारूँ
जन सामान्य विश्व को जोड़ूँ –
निज को खोजूँ ।
जी करता है ...
कलह-कवचधारी दर्शन की ...
मूँछ उखाड़ूँ, पूँछ काट दूँ ।
जी करता है ...
पा ही लूँगा –
पलनों में किलकारी भरते –
मुस्काते डालों में ।
–
18 जून 1987